Tuesday 12 June 2012

सेवा एक भक्ती



सेवा एक भाव
सेवा एक कृती
सेवा एक ध्यास
सेवा एक वसा
सेवा एक भक्ती
घेऊन सेवेचा वसा
करा कार्याचा प्रारंभ
केल्याने सेवा
होते सत्कर्म
होती कृती रुजी देवाचिये द्वारी
केल्याने सेवा
मिळतो आत्मिक आनंद
राहतो मानव सत्शील
सेवा करावी कधीही
कुणाचीही, केव्हाही
मिळवावे त्यातील समाधान
अन् करावा त्याचा आनंद
कुठेतरी मनाच्या कोपऱ्यात
घ्यावा सेवेचा ध्यास
न्यावे ते पूर्णत्वाला
म्हणजेच होते त्या सेवेची
                           भक्ती
                                     



                                   मृणाल वाळिंबे


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